कृष्णा वाणी ( भाग 1)
स्वार्थ क्या है ?
एक शब्द जो हमे कभी कभी या तो फिर कई बार सुनाई देता हे, "स्वार्थ " । वो व्यक्ति स्वार्थी ही, उसने स्वार्थ में आकर बुरा कर्म किया आदि, इत्यादि,देखा जाए तो संसार स्वार्थ को पाप का मूल मानने लगा है, परंतु क्या स्वार्थ सच मे बुरा है? नहीं! स्वार्थ शब्द बना ही हैं स्व से अर्थात स्वयं से ,जिस कार्य में स्वयं का अर्थ हो, लाभ हो वो स्वार्थ है?
अब प्रश्न ये उठता है की आपका स्व क्या ही है, यदि आपके स्व में आप ही है तो आप अवश्य स्वार्थी ही हो, यदि आपके स्व में आपका परिवार समेलित हे तो आप परिवार्थी हो, यदि आपके स्व में अन्य लोग समेलीत ही तो आप परोपकारी हो, और यदि आपके स्व में ये संसार सम्मेलित है तो आप परमार्थी हो ,तो आप स्वार्थ से दूर न जाए ,उसका विस्तार करे ।

Comments
Post a Comment