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कृष्णवाणी :प्रेम और मोह में क्या अंतर है?

              प्रेम और मोह में क्या अंतर है ।


      हमने ऐसा कोई नही होगा जिसने वृक्षो को न देखा हो, वृक्षों पे पक्षी ओ को न देखा हो , उनके गोसलो को न देखा हो, उन पक्षियों को अपने छोटे छोटे बच्चो को भोजन कराते ना देखा हो। संसार का सबसे ममत्व वाला दृश्य होता है, फिर ये दूर से अपनी चांच में दाना भरके लाते हे, स्वयं भोजन करने में असक्षम संतान की चांच में डालते है, स्वयं भूखे रहते हैं निस्वार्थतासे, और जब संतान के पंख निकल आते हैं, वो उसे उड़ना सिखाता है, और उसके पश्चात उसे उड़ना सीखते हे,और उसके पश्चात उसे स्वतंत्र कर देते है अपना जीवन जीने के लिए , उस आकाश में उड़ान भरने के लिए ,और हम मनुष्य क्या करते हे जिस संतान को हम पंखी के भाती पालकर उसे पंख निकलते ही बांध देते हे,ये सोच के की वो दूर उड़कर न चले जाए ।

        ऐसा नहीं हे की इस स्थिति में माता पिता को संतान से प्रेम नहीं हे ! अवश्य हे,परंतु इसमें प्रेम पर मोह भारी पड़ जाता है । जो स्वयं अपने और संतान के बीच में बाधा बन जाता हे,हम ये भूल जाते हे की हम केवल जन्मदाता ही है भाग्यविधाता नहीं।

            तो जब प्रेम में मोह  आ जाए तो वो प्रेम नहीं स्वार्थ बन जाता हे। इस लिए प्रेम को पास रखिए और मोह को दूर क्युकी जिससे प्रेम करते हो उसका विकास नही रोका करते  ।

                                -  राधे राधे





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