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कृष्णवाणी: प्रेम क्या है और प्रेम की वास्तविक परिभाषा क्या हे?

            कृष्णवाणी  (part -6)

       प्रेम क्या हे?

      प्रेम! प्रेम विधाता की सबसे सुंदर कृति है, परंतु हर कृति को संभालना पड़ता है। अब कोई मूर्ति को ही ले लिजिए जब कलाकार ने उसे बनाया होगा तब वो बहुत सुंदर होगी ,परंतु उसके पश्चात सोचो की उसके स्वामी ने उसकी देखभाल का कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया तो वो अब असुंदर दिखने लगेगी । उसी प्रकार केवल कह देने से प्रेम , प्रेम नहीं हो जाता इसलिए आपको अपने कर्तव्यों को पूर्ण करना होगा ,अपने प्रेम की रक्षा ,परिवार और सबंधिओ की  सुरक्षा  ,संतान को संसार ,जीवनसाथी का आधार ये कर्तव्य जब तक नहीं निभावोगे प्रेम से दूर होते जायेगे।


  यदि प्रेम का अमृत पाना हैं तो  कर्तव्य को अंजली बनानी होगी और मन से कहेंना होगा राधे राधे।

                           

                       राधे राधे।



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