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कृष्णवाणी: मनुष्य अपने विनाश का चयन केसे करता है?

           बल, शक्ति,पराक्रम इस संसार के विकास का मूल हे परंतु कभी सोचा हे की प्रकृति ने हमें ये बल, शक्ति और पराक्रम क्यू दिए हे ताकि हम जीवनी किशिका उद्धार कर सके ,किसी की सहायता कर सके,किसी की लिए कुछ अच्छा कर सके ,किसी निर्धन या फिर किसी दुर्बल की रक्षा कर सके ,इस बल शक्ति का सदुपयोग कर सके ।

           कभी आप देखिए ऐसे व्यक्तिको जिसके पास अटल शक्ति हे पर साथ ही अटल अहंकार भी हे जो स्वयं को ही सर्व श्रेष्ठ मन लेता हे लेकिन प्रकृति और मनुष्य उसे तोड़ने की साधना में लग जाते हे।

        विशाल से विशाल पर्वत ही क्यों न हो अगर वो मार्ग में है तो उसे तोड़के मार्ग प्रशस्त किया जाता है ,यदि आपके पास शक्ति हे ,बल हे,पराक्रम हे तो उसका सदुपयोग कीजिए किसी की सहायता कीजिए, किसी की रक्षा कीजिए ।

          आप अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हे तो स्मरण रखिए आप अपने ही विनाश को आमंत्रित कर रहे है अब बल अर्जित करने के पश्यात आप स्वयं का विनाश चाहते हो या इस संसार का उद्धार चाहते हो निर्णय आपका है।

     

                   राधे राधे।

                    

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