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कृष्णवाणी: हकीकत में सफलता का आनंद क्या है?

                सफलता कोन नही चाहता ,सफलता को प्राप्त करने का शिखर पर पहुंचने का अलग ही आनंद हे,और जीवन में अपने कोन नही चाहता ,हरेक व्यक्ति चाहता है की जीवन में मेरे कुछ अपने हो और सदेव मेरे साथ रहे ,क्युकी अपनो के साथ सफलता का आनंद सबसे अधिक आता हे।                       पर होता क्या है कई बार सफलता की खोज में उसके मार्ग पर चलते चलते हम अपनो से दूर हो जाते हे ,ना चाहते हुआ भी दूर हो जाते हे , उन्हें समय नहीं दे पाते ,कभी कभी भूल जाते हे की सफलता का वास्तविक आनंद अपनो के साथ आता हे,की जब हम सफल  होने के पश्यात अपनो से मिलते ही तो जो उनके मन में हमारे लिए भाव हे यही असली पुरस्कार हे।            अब आप क्या चाहते हो आप असफल होकर अकेले रहना चाहते हो या सफल होकर अपनो के साथ आनंद मनाना चाहते हो सफलता की पीछे भैगिया किंतु अपनो का साथ कभी मत छोड़िए जो आपकी सफलता के लिए उत्तरदाई है।                राधे राधे।     ...
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कृष्ण वाणी: धन को महान कोन बनाता हे?

                 मनुष्य और धन इन दोनो में  संबंध अत्यंत गहरा हे धन वो शक्ति हे जिसका उपयोग मनुष्य करता है सांसारिक वस्तु को खरीदने के लिए और मनुष्य वो शक्ति हे जो धन को महानबान देती है ,अब एक बात हे उपयोग करना चाहिए धन का और प्रेम करना चाहिए मनुष्य से ये बात अधिकतर लोग समझते ही नही,लोग यही सबसे बड़ी भूल कर बैठते हे वो प्रेम करते हे धन से और उपयोग करते हे मनुष्य का  ये अनुचित है।             देखिए आप किसी सूई से युद्ध नही लड़ सकते,न किसी तलवार से वस्त्र सी सकते है नही क्या किसके लिए हे वो समझना आवश्यक है आप भी उचित दिशा में कदम उठाई।           प्रेम कीजिए मनुष्य से और उपयोग कीजिए धन का अगर आप मनुष्य का उपयोग करने लगे तो आपको प्रेम होने लगेगा धन से ये प्रेम धीरे धीरे परिवर्तित होगा लोभ में और धीरे धीरे ये आपका अंत कर ही देगा तो सभी मनुष्यों से प्रेम कीजिए।                      राधे राधे।          ...

कृष्णवाणी: मनुष्य अपने विनाश का चयन केसे करता है?

           बल, शक्ति,पराक्रम इस संसार के विकास का मूल हे परंतु कभी सोचा हे की प्रकृति ने हमें ये बल, शक्ति और पराक्रम क्यू दिए हे ताकि हम जीवनी किशिका उद्धार कर सके ,किसी की सहायता कर सके,किसी की लिए कुछ अच्छा कर सके ,किसी निर्धन या फिर किसी दुर्बल की रक्षा कर सके ,इस बल शक्ति का सदुपयोग कर सके ।            कभी आप देखिए ऐसे व्यक्तिको जिसके पास अटल शक्ति हे पर साथ ही अटल अहंकार भी हे जो स्वयं को ही सर्व श्रेष्ठ मन लेता हे लेकिन प्रकृति और मनुष्य उसे तोड़ने की साधना में लग जाते हे।         विशाल से विशाल पर्वत ही क्यों न हो अगर वो मार्ग में है तो उसे तोड़के मार्ग प्रशस्त किया जाता है ,यदि आपके पास शक्ति हे ,बल हे,पराक्रम हे तो उसका सदुपयोग कीजिए किसी की सहायता कीजिए, किसी की रक्षा कीजिए ।           आप अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हे तो स्मरण रखिए आप अपने ही विनाश को आमंत्रित कर रहे है अब बल अर्जित करने के पश्यात आप स्वयं का विनाश चाहते हो या इस संसार का उद्धार चाहते हो निर्णय आपका है...

कृष्णवाणी: मनुष्य जीवन को श्रेष्ठ केसे बनाए ?

             पक्षी राज कहलाता हे बाज, बाज की जीवन आयु लगभग ७० वर्ष ,अब ४० वर्ष आते आते उनके पंख लचीले और लंबे हो जाते हे , चांच टेडी हो जाती है पंख भरी हो जाते हे अर्थात वो भव्य उड़ान नही ,शक्तिहीन अब बाज करे तो क्या करे ,बाज सबसे कठिन चयन करता है , चयन स्वयं की पुनर्स्थापना का , सर्वप्रथम किसी विशाल पर्वत पर जाता है एकांत में अपना गोसला बनाता हे और फिर चट्टान पर अपनी चांच मार मार कर चांच ही तोड़ देता है और प्रतिक्षा करता है पुन उग जाने की फिर वही अपने पंजों के साथ भी करता है तदपश्यत अपने भारी पंखों को एक एक कर स्वयं नोच के निकाल देता हे फिर १५० दिनों की पीड़ा सहने के बाद उसे फिर से मिलती हे वही भव्य उड़ान ,वही शक्ति और फिर जीवन के अगले ३० वर्ष जीता हे ।               यदि इच्छा शक्ति हो तो दुर्बल भी बलि बन सकता है , आप भी यही कीजिए अपने बीते हुए कल का भर त्याग दिजिए और कल्पना की एक उन्मुख उड़ान भरिए। स्वयं की पुनर्स्थापना करे तभी सर्व श्रेष्ठ बनेंगे और स्मरण रखिए छोटे छोटे आरंभ ही बड़े बड़े शिखर तक ले जाते हे।   ...

कृष्णवाणी: निस्वार्थ प्रेम किसे कहते हैं?

                     कई सारे लोगो के मन में एक प्रश्न उठता हे  कृष्ण और राधा को लेकर कहते हे की ना तो कृष्ण और राधा साथ में रहते है, ना उनका विवाह हुआ है,कृष्ण द्वारका में रहते ही राधा बरसाने में तब भी इतना प्रेम केसे? ये संबंध हे केसा ? कृष्ण उनको सरल भाषा में कहते हे, आप कभी दर्पण में देखकर अपनी दोनो आंखों को देखकर कभी पूछे की ये दोनो आंखे एकसाथ क्यू बंध होती है, एकसाथ क्यू खुलती है ,एकसाथ क्यू सोती है , एकसाथ क्यू रोती है,क्या आजीवन  एक व्यक्ति से संबंध बनाया जा सकता है बिना उनसे मिले?                कुछ ऐसा ही प्रेम हे राधा और कृष्ण का ,और ऐसा ही तो होता हे प्रेममे दो आंखो की भाती जो कभी मिलेगी नही लेकिन सदा सदा के लिए साथ जुड़े रहते हैं, यही भाव निस्वर्थता है, और यही निस्वार्थ प्रेम आनंद की और ले जायेगा ।                  राधे राधे।  

कृष्णवाणी:जीवन में विकट परिस्थिति में निर्णय केसे ले?

                  क्या आपने कभी जल को मुठ्ठी में बंध रखने का प्रयास किया हे, चलो आज करते हे, यदि आप मुठ्ठी को कस के बंध करते हे तो जल नही ठहरता यदि आप इसे ऐसे ही बहने दे तो वो अपना मार्ग खुद बनाएगा और आपकी हथेली में भी रुकेगा ।               जीवन भी कुछ इसी प्रकार होता हे जल की भाती अपना मार्ग खुद बना लेता है ,ये जीवन हरेक समस्या का समाधान स्वयं बता देता है ,इसलिए जीवन में जब भी परिस्थिति हमारी अनुकूल न हो ,हमे समाज न आ रहा हो , कुछ भी हमारे बस में न हो तो हम हताश हो जाते हे ,निराश हो जाते हे ,लेकिन यही तो नही करना शांत चित्त से देखने हे की ये जीवन में गटित क्या हो रहा हे।                पीड़ा सभी ने भोगी हे पीड़ा के समय कुछ क्रोध करते हे ,क्रोध में आकर पराक्रम करते हे यही तो नही करना है ,शांत चित्त से वो समझना हे जो ये जीवन हमे सिखाना चाहता है।        जीवन  सब शिखाएगा बस यही स्मरण रखियेगा की कब प्रयास करना हे और कब प्रतीक्षा करनी है ये आप...

कृष्णवाणी: जीवन में किससे प्रेम करना चाहिए?

            कहा जाता है की जीवन में प्रेम करना ही सुख का मूल हे,और सत्य भी ,अब प्रश्न ये उठता है की प्रेम किससे किया जाए यदि आपको कुछ क्षणों केलिए सुख चाहिए तो प्रेम कीजिए अपनी रुचियों से,यदि आपको कुछ दिनों के लिए सुख चाहिए तो प्रेम कीजिए अपने मित्रो से ,यदि आपको कुछ महीनो के लिए ,अनेक महीनो केलिए,अनेक वर्षों के लिए सुख चाहिए तो प्रेम कीजिए अपने परिवार से,माता पिता,अपनी संतान , पति पत्नी अपने संबंधी ओ से किंतु आपको सदा सदा के लिए सुखी रहेना है तो प्रेम करना होगा सिर्फ अपने कर्मों से ,क्युकी संबंध चाहे कैसा भी हो कभी न कभी तो टूटता है।           ये संसार कुछ ऐसा ही हे की जिसका साथ मिलता है उसका साथ छूटता भी हे,केवल कर्म ही मात्र एक ऐसा ही जो आपका साथ नही छोड़ेगा ,मृत्यु पशयत भी यही कर्म आपको जीवित रखता है इसलिए सदेव स्मरण रखिए की कर्म को धर्म समाज के निभाइए जीवन के अंतिम क्षण तक कर्म से प्रेम कीजिए ,जीवन के अंतिम क्षण तक सुखी रहेंगे ।         तुम सिर्फ कर्म करो फल की चिंता न करो।          ...